पुल बनी थी माँ
1. पुल बनी थी माँ ‘ कविता की रचयिता कौन है ?
उत्तर :
नरेन्द्र पुंडरीक
2. पुल बनी थी माँ’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जैसे एक पुल दो किनारों को आपस में जोड़ता है, वैसे ही माँ परिवार के हर सदस्य को प्रेम से जोड़े रखती है। इसका मतलब यह है कि माँ परिवार में प्रेम का पुल बनती है।
3. किसके बीच पुल बनी थी माँ ?
उत्तर :
कवि और उसके भाइयों के बीच |
4. जिस माध्यम से कवि और उनके भाइयों बेधड़क दौड़ रहे थे?
उत्तर :
माँ द्वारा बनाया गया प्यार के पुल से |
5. माँ रूपी पुल से बच्चों की जिंदगी रूपी रेल गाड़ी कैसे दौड़ती रही थी?
उत्तर :
बेधडक बिना हरी लाल बत्ती के।
6. "बेटों का जीवन बेरोकटोक चलती गाड़ी के समान रहा।" - सामान आशयवाली पंक्तियां कविता से चुनकर लिखें |
उत्तर:
दौड़ती रहती थी बेधड़क
बिना किसी हरी लाल बत्ती के
हम लोगों की छुक छुक छक छक
7. 'बेधड़क ' का मतलब क्या है?
उत्तर :
बिना डर के
8. माँ कब कवि और उसके भाईयों के बीच पुल बनी थी ?
उत्तर :
उनके पिता की मौत के बाद
9. ‘बुढ़ा रही है माँ’ इसका आशय क्या है?
उत्तर:
इसका मतलब यह है कि माँ के शरीर पर बुढ़ापे का निशानी दिखने लगा। वह शारीरिक और मानसिक रूप से कमज़ोर होने लगी।
10. बच्चे कैसे समझ गए कि माँ बूढ़ी है?
उत्तर :
माँ की बार बार कहने की आदत से और उनके टूटी आवाज़ से |
11. "माँ की देख-भाल की ज़िम्मेदारी बेटों पर आ गई।" - समाना आशयवाली पंक्तियां चुनकर लिखें |
उत्तर:
हाथों हाथ रहती माँ
एक दिन हमारे कंधों में आ गई |
12. क्या हुआ जब माँ बूढ़ी हो गई ?
उत्तर :
बूढ़ी हो गई तो माँ बच्चों के कंधो में आ गई |
13. "माँ एक दिन हमारे कंधों में आ गई " - इसका मतलब क्या है ?
उत्तर :
बूढ़ी हो गई तो बच्चों को अपनी माँ की देखभाल की ज़िम्मेदारी उठानी पड़ी |
14. "माँ की देखभाल की जिम्मेदारी बच्चों पर बोझ बन गई।" - समान आशयवाली पंक्तियों कविता से चुनकर लिखें | |
उत्तर :
धीरे-धीरे महसूस करने लगे हम
अपने वृषभ कंधों में
माँ का भारी होना।
15. 'वृषभ कंधों' - इसमें विशेषण शब्द कौन सा है ?
उत्तर :
वृषभ
16. 'वृषभ कंधों' - इसमें 'वृषभ' शब्द कौन सा है ?
उत्तर :
विशेषण
17. सही मिलान करें |
वृषभ कंधा - दुर्बल होना
हाथों हाथ रहना - दायित्व बदलना
महसूस करना - मर जाना
बेधड़क - दुर्बल होती रही
टूटती रही - बिना बाधा के
कंधों से उतरना - अनुभव करना
कंधा उतरना - सशक्त कंधा
कंधा बदलना - संभालना
उत्तर :
वृषभ कंधा - सशक्त कंधा
हाथों हाथ रहना - संभालना
महसूस करना - अनुभव करना
बेधड़क - बिना बाधा के
टूटती रही - दुर्बल होती रही
कंधों से उतरना - मर जाना
कंधा उतरना - दुर्बल होना
कंधा बदलना - दायित्व बदलना
18. ‘माँ आख़िर माँ ही तो है’ इससे आपने क्या समझा?
उत्तर:इसका मतलब है कि माँ अपने बच्चों के बारे में सबकुछ जानती है। सारी जिंदगी बच्चों के लिए जीनेवाली माँ बुढ़ापे में बच्चों के लिए भार बन गई। पर माँ का मातृत्व बच्चों की इस कठिनाई को सह नहीं पाया। वह स्वयं उनके कंधों से उतर गई मतलब उसका अंतिम प्रयाण हो गया।
19. "उतर गए हमारे कंधे " - इसका मतलब क्या है ?
उत्तर :
हम दुर्बल हो गए |
20. "हमारे कंधों से उतर गई माँ " - इसका मतलब क्या है ?
उत्तर :
माँ मर गई |
21. "बेटे अपने दायित्व बदलते रहे। " - समान आशयवाली पंक्तियां चुनकर लिखें |
उत्तर:
जब तक जीवित रही माँ।
हम बदलते रहे अपने कंधे
22. "माँ के चले जाने से बेटे बेसहारे बने।"- समान आशयवाली पंक्तियां चुनकर लिखें |
उत्तर:
और माँ के कंधों से उतरते ही
उतर गए हमारे कंधे
23. "पुल बनी थी माँ" कविता की आशय पर टिप्पणी लिखें |
उत्तर :
पुल बनी थी माँ
समकालीन हिंदी साहित्य के प्रमुख कवी श्री.नरेन्द्र पुंडरीक की एक सुन्दर कविता है" पुल बनी थी माँ । इस कविता में कवि सरलता से वर्णन करता है कि बुढ़ापन व्यक्ति को कैसे प्रभावित करती है |
कविता की पहली पंक्तियाँ यह बताती है कि माँ के हाथों में बच्चे कितने सुरक्षित हैं। अपने बच्चों के बीच, माँ प्रेम और सुरक्षा रूपी एक पुल बनती है और जिनसे बच्चों की जिंदगी रूपी रेल गाड़ी बेधडक बिना हरी लाल बत्ती के दौड़ती रही है | कवी कहते हैं कि माँ रुपी वह पुल अचानक नहीं टुटा | लेकिन धीरे-धीरे माँ के शरीर पर बुढ़ापे का निशानी दिखने लगा। वह शारीरिक और मानसिक रूप से कमज़ोर होने लगी। माँ की बार बार कहने की आदत से और उनके टूटी आवाज़ से बच्चे समझते हैं कि बूढ़ी हो गई माँ |
बूढ़ी होने के बाद माँ की देख-भाल की ज़िम्मेदारी बेटों पर आ गई | उस समय माँ बच्चों केलिए एक बोझ बन गई और बच्चे अपने दायित्व बदलते रहे | इसे देखकर माँ बहुत दुखी हुई | यहाँ कवी कहते है कि "माँ आख़िर माँ ही तो है" | इसका मतलब है कि माँ अपने बच्चों के बारे में सबकुछ जानती है। सारी जिंदगी बच्चों के लिए जीनेवाली माँ बुढ़ापे में बच्चों के लिए भार बन गई। पर माँ का मातृत्व बच्चों की इस कठिनाई को सह नहीं पाया। वह स्वयं उनके कंधों से उतर गई मतलब उसका अंतिम प्रयाण हो गया। माँ की मरने के के बाद बच्चे यह पहचानते हैं कि माँ के बिना वे बेसहारे हैं।
वर्तमान संदर्भ में यह कविता बहुत प्रासंगिक है । 'भोगे और फेंको' संस्कृति के गुलाम होती रही नई पीढ़ी को माता-पिता बोझ बन जाते हैं। उन्हें एक ही विचार है कि इस बोझ को किसी न किसी रूप में छोड दें। इसलिए ही हमारे समाज में वृद्ध मंदिरों की संख्या बढती जा रही है। निश्चय ही यह कविता हमें एक बार फिर सोचने के लिए बाध्य बना देती है।
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